मै किससे खेलूं होली रे !
पी हैं बसे परदेश,
मै किससे खेलूं होली रे !
रंग हैं चोखे पास
पास नही हमजोली रे !
पी हैं बसे परदेश,
मै किससे खेलूं होली रे !
देवर ने लगाया गुलाल,
मै बन गई भोली रे !
पी हैं बसे परदेश,
मै किससे खेलूं होली रे !
ननद ने मारी पिचकारी,
भीगी मेरी चोली रे !
पी हैं बसे परदेश,
मै किससे खेलूं होली रे !
जेठानी ने पिलाई भांग,
कभी हंसी कभी रो दी रे !
पी हैं बसे परदेश,
मै किससे खेलूं होली रे !
सास नही थी कुछ कम,
की उसने खूब ठिठोली रे !
पी हैं बसे परदेश,
मै किससे खेलूं होली रे !
देवरानी ने की जो चुहल
अंगिया मेरी खोली रे !
पी हैं बसे परदेश,
मै किससे खेलूं होली रे !
बेसुध हो मै भंग में
नन्दोई को पी बोली रे !
पी हैं बसे परदेश,
मै किससे खेलूं होली रे !
कवि कुलवंत सिंह
Friday, March 18, 2011
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12 comments:
वाह वाह आनन्द आ गया कविराज्……… होली की हार्दिक शुभकामनायें।
बहुत सुन्दर होली| मजा आ गया|
होली की हार्दिक शुभकामनायें।
बहुत सुन्दर रचना!
--
मस्त फुहारें लेकर आया,
मौसम हँसी-ठिठोली का।
देख तमाशा होली का।।
--
होली की बहुत-बहुत शुभकामनाएँ!
wah wah dost,
kya khub kaha aane ...bas pi ki kami khal rhai hai.
प्रिय कविराज कवि कुलवंत सिंह जी
सादर सस्नेहाभिवादन !
कहां हैं आप आजकल ?
होली के बाद से आपकी अनुपस्थिति खटक रही है …
सब कुशल मंगल तो है… घर-परिवार में सभी स्वस्थ-सानन्द हैं न !
बहुत बहुत मंगलकामनाएं हैं …
नई रचना पढ़ने का अवसर अब दे भी दीजिए सरकार … :)
बहरहाल , होली की रचना फिर पढ़ कर आनन्द आ गया …
हार्दिक शुभकामनाएं !
-राजेन्द्र स्वर्णकार
बहुत खूबसूरत गीत
सुन्दर गीत कुलवंत भाई....
आनंद आ गया...
सादर बधाई...
लो जी होली खतम दीपावली आ गई
पोस्ट नई लगाओ
होली के कपड़े
बदल कर आओ।
वाह ...बहुत ही बढि़या ।
रगं बरसे भीगे चुनर वाली रगं बरसे
Happy Holi
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