Monday, May 28, 2007

माली

माली
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बहुरंगी पुष्प खिलाएं
सुमन सुरभि बिखराएं
पुष्पित हो हर कली इतराए
आओ ऐसा हिंदुस्तान बनाएं ।
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माली बन इस कानन में तत्पर
मुस्कान बिखेरें हर कुसुम अधर
सौहार्द्र प्रेम एकता संजोये
पुष्पित सुरभित हो हर उर ।
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मात्सर्य न उगने पाये
खर पतवार न पनपने पाये
चलो प्रेम का बिरवा सींचें
धरा चमन माली बन जायें।
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कवि कुलवंत सिंह

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