प्यार का इजहार करके क्यूँ चले जाते हैं लोग ।
कैसे जी पाते हैं वह हम तो लगा लेते हैं रोग ॥
चांद तारों को मैं जब भी देखता हूं साथ साथ,
यार मेरा लगता लौटेगा मिटाकर अब वियोग ।
कैसे भूलूँ उन पलों को साथ जो हमने बिताए,
रब की धरती पर मिला आशीष था कैसा सुयोग,
आ गले से लग ही जाओ, चंद सांसे ही बची हैं,
दो मुझे जीवन नया, अपना मिटा लो तुम भी सोग ।
याद तुमको गर नही हम, था जताया प्यार तुमने,
जिंदगी में तुम किसी के, अब न करना यह प्रयोग ।
कवि कुलवंत सिंह
Sunday, May 11, 2008
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14 comments:
dav
Good One's
sunadar gajal.jari rkhen..
बहुत खूब कवि जी
Thanks a lot dear friends!
शाब्बास क्या बात कही है आपने. ये काव्य तो मेरे दिल को छु गया कवि कुलवंत जी.
कुलवंत जी
आप का रदीफ़ को काफिये बना कर नए शब्दों के साथ किया गया प्रयोग पसंद आया. बधाई.
नीरज
bahut khoob hai
आप का ये प्रयोग अति सुंदर है!.......यूं ही जारी रखिये शुभकामनाये!
बढ़िया है. लिखते रहिये.
Thanks a lot my dear friends!
प्यार का इजहार करके क्यूँ चले जाते हैं लोग ।
कैसे जी पाते हैं वह हम तो लगा लेते हैं रोग ॥
achchha matlah hai.achchhee ghazal ke liye aapko badhaayee...
- Pramod Kumar Kush 'tanha'
प्रमोद जी आप का हार्दिक धन्यवाद..
सचमुच दिल को छू गई आपकी ये गज़ल...१४ मई से २० मई तक दार्जीलिंग गई हुई थी आकर पढ़ा तो आपकी खूबसूरत गज़ल नजर आई...बहुत-बहुत बधाई आपको...
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