न्याय बिकता है तराजू तोल ले,
हृदय की संवेदना का मोल ले,
हर तरफ है रुपया आज बोलता,
बेचने अपनी पिटारी खोल ले.
बचे हुए भी चार गांधी चुक गये,
सत्य अहिंसा पुस्तकों में छप गये,
हिंदुस्तां की अस्मिता को बेचने
सौदागर ही हर तरफ बस रह गये .
अर्चना से देवता अब डर रहे,
सुन मनुज की मांग कंपन कर रहे,
निज खुशी की है नही चिंता उसे,
दूसरे की हानि का प्रण कर रहे.
कवि कुलवंत सिंह
Sunday, January 3, 2010
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10 comments:
अर्चना से देवता अब डर रहे,
सुन मनुज की मांग कंपन कर रहे,
निज खुशी की है नही चिंता उसे,
दूसरे की हानि का प्रण कर रहे.
bahut badiya kulwantji dusre ki haani ho ya kuch bhi ho hamaralabh ho labh ho aisa hi aajkal soch hai aapnesahi prahar kiya
बहुत बढ़िया मुक्तक हैं।बधाई।
अच्छे मुक्तक!!
’सकारात्मक सोच के साथ हिन्दी एवं हिन्दी चिट्ठाकारी के प्रचार एवं प्रसार में योगदान दें.’
-त्रुटियों की तरफ ध्यान दिलाना जरुरी है किन्तु प्रोत्साहन उससे भी अधिक जरुरी है.
नोबल पुरुस्कार विजेता एन्टोने फ्रान्स का कहना था कि '९०% सीख प्रोत्साहान देता है.'
कृपया सह-चिट्ठाकारों को प्रोत्साहित करने में न हिचकिचायें.
-सादर,
समीर लाल ’समीर’
nice
सच्चाई से रूबरू करती हुई बहुत बढ़िया मुक्तक...धन्यवाद जी!!
अच्छे मुक्तक ,बधाई । नव वर्ष मंगलमय हो
bahut badhia teenon muktak.
Bahut sunder Kulwant sir...sath naw warsh ki hardik subhkamnaye..!
न्याय बिकता है तराजू तोल ले,
हृदय की संवेदना का मोल ले,
हर तरफ है रुपया आज बोलता,
बेचने अपनी पिटारी खोल ले.
Sach hai..aur nyay bikta hai,phirbhi andha hai..hath nyay ke badle anyay hee lag sakta hai!
sundar rachana ....Badhai !!
http://kavyamanjusha.blogspot.com/
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