ब्रजेश पाठक मौन
मौन की वाणी मधुर
था मौन का हंसना मधुर,
मौन का चिंतन प्रखर
थे मौन के मुखरित अधर ?
शून्य में है वह तिरोहित
मुक्ति ले जन्मों का बंधन,
याद रखना यादें संजो
अब नही करना है क्रंदन .
नीर न नयनों में लाना
स्मृतियों को चंदन बनाना,
स्मृति पटल पर ओस कण सी
तात की यादें सजाना .
सर से जब उठ जाता हाथ
रास नही कुछ आता है,
वही है दुनिया, लोग वही हैं
मन बस बेबस हो जाता है .
हर धड़कन बन कर अब स्पंदन
गीत तुम्हारे गाता है,
सुरभि सुमन स्मृति बिखरा कर
चारों धाम यहां पाता है .
प्रेम रस का अर्ध्य चढ़ाकर
काव्य की धारा बहा दी,
भावों का संसार लेकर
सौरभ श्रद्धा माला चढ़ा दी .
परिमल बसी तुलसी का आंगन
ज्योत दीप में जलती पावन,
घर के इक - इक कोने में है
सुरभित यादों का सावन .
पारंगत कई विधाओं में
आकृतियों के नवरूपों में,
चित्रकला की पद्धतियों में
वार्ता, सृजन, कलाओं में .
भाव-भंगिमा, नव अभिव्यंजन
अलंकार, छंद कवि का गुंजन,
आंखे भर - भर आती हैं
गीत सृजन, नव गीत सृजन .
अवसादों ने किया न निर्बल
झंझाओं से हुआ न दुर्बल,
आत्म मुग्ध अभिमंत्रित तन था
करूणा से आप्लावित निर्मल .
मंथर मंजुल मधु स्मृतियां
निर्झर बन कर बहती हैं,
राजेश प्रियंका औ नीलेश के
रोम रोम में रहती हैं .
कवि कुलवंत सिंह
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9 comments:
कुलवंत जी बहुत सुन्दर रचना रची है।ब्रजेश पाठक जी के बारे में,जिन की स्मृति में आप ने यह रचना लिखी है,यदि उन के बारे में भी कुछ परिचय दे देते तो सही होता।क्युं कि मुझ जैसे कई पाठक ब्रजेश जी से अपरिचित होगें।
एक सुन्दर रचना के लिए पुन: बधाई।
shradhanjali.
एक उत्कृष्ट रचना ......शब्द तो कमाल कर रहे है भावो के साथ मिलकर .......अतिसुन्दर
अवसादों ने किया न निर्बल
झंझाओं से हुआ न दुर्बल,
आत्म मुग्ध अभिमंत्रित तन था
अरूणा से आप्लावित निर्मल .
कवि कुलवन्त जी!
इस कविता के साथ-साथ
ब्रजेश पाठक जी को श्रद्धांजलि!
अत्यन्त सुन्दर रचना
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तख़लीक़-ए-नज़र
Adarneeya Kulavant ji,
bahut hee bhavanatmak kavita..visheshkar in panktiyon men pathak ji ke prati ..apakee samvedanayen pata chalatee hain...
अवसादों ने किया न निर्बल
झंझाओं से हुआ न दुर्बल,
आत्म मुग्ध अभिमंत्रित तन था
करूणा से आप्लावित निर्मल .
achchee panktiyan.
Poonam
कुलवन्त जी!
सुन्दर रचना के लिए बधाई।
कुलवन्त जी!
सुन्दर रचना के लिए बधाई।
आप सभी मित्रों का हार्दिक धन्यवाद..
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