विधु से मादक शीतलता ले
शोख चांदनी उज्ज्वलता ले,
भू से कण कण चेतनता ले
अंतर्मन की यौवनता ले .
अरुणिम आभा अरुणोदय से
सात रंग ले किरण प्रभा से,
रंग चुरा मनभावन उससे
प्रीत दिलों में जिससे बरसे .
जल बूंदों से निर्मलता ले
पवन तरंगों से झूला ले,
संगीत अलौकिक नभ से ले
मधु रस अपने यौवन का ले .
डाल डाली पर यौवन भार
गाता मधुमय गीत बहार,
पुष्प सुवास बह संग बयार
रति मनसिज सी प्रेम पुकार .
पाकर मधुमय पुष्प सुवास
गंध को भर कर अपनी श्वास
इक तितली ने लिया प्रवास,
किया पुष्प पर उसने वास .
मधुर प्रीत की छिड़ गई रीत
दोनो लिपटे कह कर मीत,
पंखुड़ियों ने भूली नीति
मूक मधुर बिखरा संगीत .
अतिशय सुख वह मौन मिलन का
मद मधुमय उस रस अनुभव का,
कंपन करती पंखुड़ियों का
तितली के झंकृत पंखों का .
पराग कणों से कर आलिंगन
शिथिल हुए दोनों के तन मन,
सुख मिलता सब करके अर्पण
हर इक कण में रब का वर्णन .
कवि कुलवंत सिंह
Thursday, September 3, 2009
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10 comments:
आपकी रचना बहुत प्रभावित करती है...आप बहुत अच्छा लिखते हैं
सुख मिलता सब करके अर्पण
हर इक कण में रब का वर्णन !!!
वाह ! वाह ! वाह ! क्या बात कही इन पंक्तियों में आपने....
मंत्रमुग्ध करती अतिसुन्दर रचना.....बहुत बहुत आभार पढ़वाने के लिए..
इश्के हकीकी की याद दिलादी आपने।
( Treasurer-S. T. )
बहुत खूब ..रूमानी रचना बहुत ही अच्छी लगी यह
मधुर प्रीत की छिड़ गई रीत
दोनो लिपटे कह कर मीत,
पंखुड़ियों ने भूली नीति
मूक मधुर बिखरा संगीत .
एक गज़ब सी मदहोशी बिखेर दी है .......जिसमे सिर्फ नशा सा एहसास हो रहा है .......क्या बात है!कमाल की लेखनी है .....ऐसे ही लिखते रहे.....
सुन्दर है,
कविता के लिए बधाई!
wah wah wah.
bahut uttam rachna. hindi shabdon ka bahut sunder prayog. badhaai.
बधाई रचना सुन्दर बन पड़ी है
"पाकर मधुमय पुष्प सुवास
गंध को भर कर अपनी श्वास
इक तितली ने लिया प्रवास,
किया पुष्प पर उसने वास .
पराग कणों से कर आलिंगन
शिथिल हुए दोनों के तन मन,
सुख मिलता सब करके अर्पण
हर इक कण में रब का वर्णन"
बहुत सुन्दर रचना....बहुत बहुत बधाई....
aap sabhi mitron ka haardik dhanyawaad..
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