सहरा की धूप में जो जल रहा था,
वेदना के गरल से जो गल रहा था,
काल के निर्मोह हाथों पल रहा था,
सुधा का प्याला उसे तुमने पिलाया ।
मौत के आगोश से तुमने बचाया ॥
जीवन का संघर्ष जिसको छल रहा था,
भरी जवानी में भी जो ढ़ल रहा था,
स्वयं का जीवन जिसको खल रहा था,
अंधकार में उर्मिल बन कर तुम आयीं ।
जीवन में जलनिधि बन कर तुम छायीं ॥
दुश्मन का कुचक्र हर पल चल रहा था,
चुपचाप वह हाथ अपने मल रहा था,
गिराया हर बार जब भी संभल रहा था,
करुणा को द्रावित कर आनंद बनाया ।
गहन वेदना को तुमने मधु रस पिलाया ॥
नयनों से अविरल कितना नीर बहाया,
शून्य गगन में निर्जन मन बिखरा पाया,
दग्ध दुख अभिशापित कर हृदय बसाया,
तप्त उर को अंक भर तुमने सहलाया ।
नयनों में भर छवि उसे अपना बनाया ॥
सुख की निर्मल छाया का भान कराया ।
गीत प्रीत का मीत बना कर उसे सुनाया ॥
कवि कुलवंत सिंह
Thursday, March 26, 2009
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14 comments:
बहुत अच्छा.
बहुत अच्छा लिखा है। बधाई।
बहुत अच्छा लिखा है। बधाई।
ek komal aur swach ehsas. badhee.
बहुत बढ़िया एक उम्मीद दिखी इस रचना को पढने में .अच्छा लिखा है आपने
Waah !!! Aasha vishvaas se bhari bahut hi sundar rachna!
दुश्मन का कुचक्र हर पल चल रहा था,
चुपचाप वह हाथ अपने मल रहा था,
गिराया हर बार जब भी संभल रहा था,
करुणा को द्रावित कर आनंद बनाया ।
गहन वेदना को तुमने मधु रस पिलाया ॥
waah behad khubsurat aashawadi rachana bahut badhai.
आपके गीत हमेशा सुनहरे ही होते है
आप सभि मित्रों का बहुत बहुत धन्यवाद
पहली बार आपके ब्लॉग पर आना हुआ..........बहुत सुंदर रचनाएँ पढने को मिली..........बार बार आते रहेंगे।
kaviji, aap kavita to behtar karte hain, thoda dhyan shilp par denge to siddhi poorn hogi, maaf karen.
geet padh kar man jhoom utha. badhai sweekar karen.
सुख की निर्मल छाया का भान कराया ।
गीत प्रीत का मीत बना कर उसे सुनाया ॥ beautiful
bahut sunder likha hai, khas ker ke "नयनों से अविरल कितना नीर बहाया,
शून्य गगन में निर्जन मन बिखरा पाया,
दग्ध दुख अभिशापित कर हृदय बसाया,
तप्त उर को अंक भर तुमने सहलाया ।
नयनों में भर छवि उसे अपना बनाया ॥
"
bahut achhae shabdon ka upyog kiya hai.......
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