समीक्षा : कुलवंत सिंह
काव्य संग्रह : कलम और खयाल
रचनाकार : सी आर राजश्री
प्रकाशक : सोनम प्रकाशन, कटक
मूल्य : रू १००/-
अपने पिताश्री को समर्पित सुश्री सी आर राजश्री के इस प्रथम काव्य संग्रह ’कलम और खयाल’ में ४५ कविताओं के खयालों को संजोकर कलमबद्ध किया गया है । इस काव्यसंग्र्ह की एक महत्वपूर्ण विशेषता यह है कि यह एक दक्षिण भारतीय कवियित्री का हिंदी में काव्य संग्रह है; जिसकी भूरि भूरि प्रशंसा की जानी चाहिए । इस काव्य संग्रह के विमोचन का मुझे सौभाग्य प्राप्त हुआ । कोयंबतूर में डा. जी आर डी कालेज में हिंदी की प्राध्यापिका के रूप में विद्यार्थियों में ही नही अपितु सभी स्टाफ और सहकर्मियों में अति लोकप्रिय राजश्री की कविताओं के संग्रह में कई नायाब बातें हैं ।
आइये बात करते हैं ’कलम और खयाल’ में अंतर्निहित कुछ भावों की ।अ नके अंदर कविता की भावना जन्म लेती है, जब वह बहुत छोटी थीं; माखन लाल चतुर्वेदी की कविता ’पुष्प की अभिलाषा’ पढ़कर । पुष्प कीअभिलाषा क्या है ? वह किसी के शीश के मुकुट में नही जड़ना चाहता, वह किसी के हार में भी नही गुंधना चाहता, उसकी बस यही एक अभिलाषा है कि हे माली ! जिस पथ पर अपनी मातृभूमि के लिए लड़ने को वीर जा रहे हों, उस राह पर मुझे डाल देना । उनके चरणों की धूल पाकर ही मैं धन्य हो जाऊंगा ।
कविताएं यां यूं कहिये कि साहित्य संवेदनाएं जगाता है । हमें आदमी से इनसान बनात है । ज्ञान विज्ञान बहुत पा लिया, सुख सुविधाएं भी बहुत पा लीं, लेकिन अगर साहित्य न हो तो हम जानवर से इंसान कैसे बनेंगे ! यह साहित्य ही है जो हमारे अंदर संवेदनाएं भरता है । किसी मनो वैज्ञानिक ने सच ही कहा है कि हर मनुष्य को प्रतिदिन १० मिनट साहित्य वाचन अवश्य करना चाहिए ताकिअ उसके अंदर की संवेदनाएं जिंदा रहें ।
कलम और खयाल में प्राय: सभी विषयों पर कवियित्री ने अपने खयाल कलम बद्ध किये हैं - चाहे वह गांव हो, रेलगाड़ी हो, पिता हो, भाई हो, बहन हो, दीवाली हो, विद्यार्थी हो, महिला हो, आसमान, हिंदी, भ्रष्टाचार, नई सुबह, नया वर्ष हो; गांधी, इदिरागांधी, रामायण, भारत, कारगिल हो । अनेकानेक विषय पर उनके विचार पढ़ने को मिलते हैं । उनकी कुछ कविताओं की पंक्तियां उद्धृत करना चाहूंगा । धर्म कविता में - ’सारे धर्मॊ का एक ही सार, अहिंसा, परोपकार, आपस में प्यार’ । दुलहन के बारे में देखिये उनके विचार -”उमंग भरी आशा लिये, प्यार का भंडार लिये, पति का घर स्वर्ग बनाने’ । जिंदगी पर उनके शब्द - ’ जीने का नाम है जिंदगी, आगे बढ़ने का नाम है जिंदगी, कभी न रुकने का नाम है जिंदगी’ ।कार्गिल के युद्ध ने उन्हे कितना विचलित किया - ’घबराओ मत सिपाहियों, वतन तुम्हारे साथह ै, जीत कर लौट आना, तुम्हारा बेसब्री से इंतजार है ।’ शादी पर उनके भारतीय विचारों की परिपक्वता देखिये - ’ दो अनजान दिलों का मिलन, दो आत्माओं का संगम, दो परिवारों का सस्नेह मिलाप, सुख दुख सहेंगे संग संग, जब तक सांस है तन पर ।’ हिंदी भाषा - राज भाषा पर भी उन्होंने अपने स्वाभाविक उद्गार व्यक्त किये हैं और हिंदी को पूरे भारतवर्ष की राजभाषा के रुप में देखना चाहती हैं । भोर से लेकर रात तक आसमान के विभिन्न सलोने रूप देखकर कवियित्री को प्रेरणा मिलती है- काव्य सृजन की । विद्यार्थियों के लिए कितना सुंदर संदेश है - ’ हर मुमकिन ख्वाब को हकीकत में बदलना है, तुम्हे देस को बुलंदी तक ले क्र जाना है ।’ भारत की एकता पर उन्हे गर्व है। प्यार बिना जिंदगी अधूरी है - ’ जिंदगी तुम्हारे बिन पिया है अधूरी, लौट आओ तुम, मिटा दो यह दूरी’। जहां अशिक्षा है, अज्ञानता है , कई जगह आज भी बेटी को बोझ समझा जाता है । और इससे कवियित्री के दिल को थेस पहुंचती है, - ’पता नही क्यों बेटी को बोझ समझा जाता है, प्यार देने की जगह उसे दुत्कारा जाता है, जन्मते ही गला उसका घोंटा जाता है, इस नीच काम से पछतावा क्यों नही होता है ?’ अरे आज तो विज्ञान ने तकनीक दे दी है - अल्ट्रासोनोग्राफी । जन्म लेने के बाद क्यों अब तो जन्म लेने के पहले ही मार दिया जाता है - भ्रूण हत्या ।
उनकी एक कविता में कहानी है - मुन्ना काला है, सब उसके दोस्त उसे चिढ़ाते हैं, कोई उससे दोस्ती नही करना चाहता । लेकिन जब काला गुब्बारा भी दुसरे गुब्बारों की तरह गैस भरने पर उड़ने लगता है तो मुन्ने के अंदर का अंधेरा धीरे धीरे छंटने लगता है । नये वर्ष में वह चाहती हैं कि - ’ नफरत की दीवारों को तोड़ दो, सारे गिले शिकवे छोड दो’ । शैशव से शमशान तक के सफर को आसान बनाने की कोशिश की है - ’ शैशव से शमशान तक का सफर, मुश्किल नही आसान है यह डगर, समझ लो यारों ! जीवन एक बार ही जीना है, कुछ नया कर दिखाना है, मानवता को सबल बनाना है, सत्य प्रेम पर चलना है, दुनिया को मुट्ठी में करना है ।’ चात्रों के साथ बिताये उनके पलों को देखिये - ’दुनिया की नियति तोड़ दो, राह के कांटो को दूर करो, अपना एक नया संसार रचो ! मैने तुम्हे कभी डांटा, कभी फटकारा, पर जरा सोचो ऐसा क्यॊ किया ? तुम्हारी भलाई के सिवा और क्या कारण हो सकता है भला ?’ अपने छात्रों को अपने बच्चों सा मानकर उन्हे जिंदगी की राह दिखाना, ज्ञान देने के अतिरिक्त पथ प्रदर्शक बनना, आज के इस व्यवसायिक युग में कोई कोई ही कर पाता है । ऐसी कवियित्री के भावों को नमन करते हुए पुन: उन्हे एक बार बधाई देते हुए, उनके पति डा. बी सुब्रमणी एवम बच्चों विशाख एवं विवेक को विशेष बधाई देते हुए - क्यों कि उनके सहयोग एवं प्रोत्साहन से ही तो वह यह मुकाम हासिल कर सकी हैं और साथ ही कालेज के संस्थापक एवं पदाधिकारी भी विशेष बधाई के पात्र हैं जिनके सहयोग एवं प्रोत्साहन से ही तो ऐसी उपलब्धियों का आधार बनता है ।
कवि कुलवंत सिंंह
२ डी, बद्रीनाथ, अणुशक्तिनगर
मुंबई - ४०००९४
०२२-२५५९५३७८
Friday, March 6, 2009
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