Thursday, March 26, 2009

संत्रास

सहरा की धूप में जो जल रहा था,
वेदना के गरल से जो गल रहा था,
काल के निर्मोह हाथों पल रहा था,
सुधा का प्याला उसे तुमने पिलाया ।
मौत के आगोश से तुमने बचाया ॥

जीवन का संघर्ष जिसको छल रहा था,
भरी जवानी में भी जो ढ़ल रहा था,
स्वयं का जीवन जिसको खल रहा था,
अंधकार में उर्मिल बन कर तुम आयीं ।
जीवन में जलनिधि बन कर तुम छायीं ॥

दुश्मन का कुचक्र हर पल चल रहा था,
चुपचाप वह हाथ अपने मल रहा था,
गिराया हर बार जब भी संभल रहा था,
करुणा को द्रावित कर आनंद बनाया ।
गहन वेदना को तुमने मधु रस पिलाया ॥

नयनों से अविरल कितना नीर बहाया,
शून्य गगन में निर्जन मन बिखरा पाया,
दग्ध दुख अभिशापित कर हृदय बसाया,
तप्त उर को अंक भर तुमने सहलाया ।
नयनों में भर छवि उसे अपना बनाया ॥

सुख की निर्मल छाया का भान कराया ।
गीत प्रीत का मीत बना कर उसे सुनाया ॥

कवि कुलवंत सिंह

14 comments:

इष्ट देव सांकृत्यायन said...

बहुत अच्छा.

शोभा said...

बहुत अच्छा लिखा है। बधाई।

MANVINDER BHIMBER said...

बहुत अच्छा लिखा है। बधाई।

रंजीत/ Ranjit said...

ek komal aur swach ehsas. badhee.

रंजू भाटिया said...

बहुत बढ़िया एक उम्मीद दिखी इस रचना को पढने में .अच्छा लिखा है आपने

रंजना said...

Waah !!! Aasha vishvaas se bhari bahut hi sundar rachna!

Anonymous said...

दुश्मन का कुचक्र हर पल चल रहा था,
चुपचाप वह हाथ अपने मल रहा था,
गिराया हर बार जब भी संभल रहा था,
करुणा को द्रावित कर आनंद बनाया ।
गहन वेदना को तुमने मधु रस पिलाया ॥
waah behad khubsurat aashawadi rachana bahut badhai.

dhiru singh { धीरेन्द्र वीर सिंह } said...

आपके गीत हमेशा सुनहरे ही होते है

Kavi Kulwant said...

आप सभि मित्रों का बहुत बहुत धन्यवाद

Shikha Deepak said...

पहली बार आपके ब्लॉग पर आना हुआ..........बहुत सुंदर रचनाएँ पढने को मिली..........बार बार आते रहेंगे।

रवीन्द्र दास said...

kaviji, aap kavita to behtar karte hain, thoda dhyan shilp par denge to siddhi poorn hogi, maaf karen.

Yogesh Verma Swapn said...

geet padh kar man jhoom utha. badhai sweekar karen.

नीलिमा शर्मा Neelima Sharma said...

सुख की निर्मल छाया का भान कराया ।
गीत प्रीत का मीत बना कर उसे सुनाया ॥ beautiful

anita agarwal said...

bahut sunder likha hai, khas ker ke "नयनों से अविरल कितना नीर बहाया,
शून्य गगन में निर्जन मन बिखरा पाया,
दग्ध दुख अभिशापित कर हृदय बसाया,
तप्त उर को अंक भर तुमने सहलाया ।
नयनों में भर छवि उसे अपना बनाया ॥
"
bahut achhae shabdon ka upyog kiya hai.......