तुम पास तो आओ जरा,
दिल उदास है आज,
अंधेरों में घिरा है,
एक दीप तो जला जाओ।
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नयनो मे चंचलता नही,
अधरों पे मुस्कान नही,
जीवन में बहार नही,
कोई फूल तो खिला जाओ।
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तन में प्राण नही,
मन में भाव नही,
सांसों में महक नही,
देहगंध बिखरा जाओ।
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पांवों में गति नही,
हाथों में हलचल नही,
हृदय में धड़कन नही,
आकर सीने से लग जाओ।
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कवि कुलवंत सिंह
Sunday, July 8, 2007
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6 comments:
हमेशा की तरह..एक और बेहतरीन रचना।
*** राजीव रंजन प्रसाद
आदरणीय कवि कुलवंत जी
भाव-प्रवण है, शब्दों
का चयन अच्छा है.
लेकिन कुछ अधूरापन
है, खटकता है कि जैसे
कुछ छूट रहा है, कुछ है
जो उजागर होने से रह
गया है. क्योंकि
सिर्फ पा लेने भर से
पूरापन हासिल नहीं हो
जाता.
सादर
आत्माराम
कुलवंत जी ! सुंदर कविता है
कविता
कुलवंत जी ! भावपूर्ण सुंदर अभिव्यक्ति है..
डा रमा द्विवेदी
नयनो मे चंचलता नही,
अधरों पे मुस्कान नही,
जीवन में बहार नही,
कोई फूल तो खिला जाओ।
bahut bahut sundar ,,,,very nice and simple words ...
पांवों में गति नही,
हाथों में हलचल नही,
हृदय में धड़कन नही,
आकर सीने से लग जाओ।
पढ़ते ही भाव विभोर करने वाली श्रेष्ठ पंक्तिया
बहुत खुभ
"वाणी"गौरव गोलछा
उदयपुर {राज.}
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