(भाभा परमाणु अनुसंधान केंद्र पर मेरी यह कविता केंद्र की गतिविधियों एवं उपलब्धियों पर प्रकाश डालती है। अप्सरा, साइरस, ध्रुव केंद्र में तीन अनुसंधान रिएक्टर हैं। नासिक (महाराष्ट्र) में किरणन संयत्र लगाया गया है।)
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अरब सिंधु तट शोभित,
ज्ञान प्रसार नित मुखरित,
परमाणु अनंत ज्ञान पूरित,
सृजन संसृति निरत प्रहसित।
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गिरि पयोधि मध्य सुशोभित,
प्रकृति छ्टा सघन रंजित,
निखार कन कन आच्छादित,
अभिराम दृष्य से उर पुलकित।
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हिंद मुकुट ज्ञान परचम,
लुप्त अज्ञान, मिटे भ्रम,
ज्ञान तीर्थ आलोक उद्गम,
विश्व विख्यात स्थल श्रम।
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शक्ति संचरित भारत सबल,
परमाणु शक्ति संपन्न प्रबल,
संपूर्ण देश गौरव सकल,
’भाभा’, ’कलाम’, ’विक्रम’ कर्मस्थल।
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केंद्र मे ’अप्सरा’ अवतरित,
विज्ञानी प्रेम पाश से हर्षित,
गोल गुंबद ’साइरस’ निर्मित,
परमाणु ऊर्जा प्रतीक सृजित।
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’ध्रुव’ से बनी निज पहचान,
भारत का गौरव अभिमान,
पोषित नाना अनुसंधान,
विश्व गाये स्तुति गान।
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चिकित्सा क्षेत्र उपयोग महती,
विकिरण निदान उपचार करती,
प्रकृति के रहस्य समझाती,
मानव को नवजीवन देती।
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नाना अन्न, फ़सलें विकसित,
खाद्यान्न, सब्ज, दाल, किरणित,
’कृषक’ सुविधा नासिक निर्मित,
जीवन सौंदर्य विज्ञान सिंचित।
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अहो भाग्य श्रम में जुटें,
प्रशस्ति पथ प्रति पल डटें,
जन जन विकास मार्ग जुटें,
आलोक प्रखर अज्ञान मिटे।
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मुकुट भाल युग युग रहे,
वसुधा गौरव तरणि रहे,
सश्रम नित निनाद रहे,
अर्पित पूजा कर्म रहे।
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Kavi Kulwant
Thursday, July 5, 2007
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3 comments:
बहुत सुन्दर!!
नई कविताओं के इस समय में ऐसी परम्परागत पद्य रचनाएं बहुत मक नजर आती हैं ।
आप 'बार्क' में राजभाषा अधिकारी हैं ?
आप लोगों के शब्दों के लिए अति धन्यवाद । विष्णु बैरागी जी! मैं राजभाषा नही वैज्ञानिक अधिकारी हूँ। IIT Roorkee से रजत पदक के साथ।
कवि कुलवंत
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