अश्रुधार में हिमखंड को
आज पिघल जाने दो ।
अंतर्मन में दबी वेदना को
आज तरल हो जाने दो ।
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सजल नयन कोरों से
अश्रु गाल ढुलकने दो ।
करुण क्रंदन से विषाद को
आज द्रवित हो जाने दो ।
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विकल प्राण दुख से विह्वल
निरत व्यथा मिट जाने दो ।
मथ डालो इस तृष्णा को
पूर्ण गरल बह जाने दो ।
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सूनी आहों मे सुस्मित
अभिलाषा को करवट लेने दो ।
निस्तब्ध व्यथित पतझड में
ऋतु बसंत छा जाने दो ।
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नीरव निशा गहन तम में
स्वर्ण किरण खिल जाने दो ।
अंधकार मय जीवन पथ पर
ज्योति पुंज बिखर जाने दो ।
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ह्रदय मरुस्थल जीवन को
आज हरित हो जाने दो ।
पादप बंजर पर उगने को
आज हल चल जाने दो ।
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कुसुम कुंज खिल चुका बहुत
मधुकर को अब गाने दो ।
स्वत: भार झुक चुका बहुत
मकरंद मधु बन जाने दो ।
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विरह तप्त इस गात पर
मेघ बिंदु बरसाने दो ।
उद्वेलित ह्रदय उच्छवासों को
सुधा मधुमय हो जाने दो ।
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प्रेम सिंधु लेता हिलोरें
लहरों को उन्मुक्त उछलने दो ।
मादकता बिखर रही अनंत
प्रणय मिलन हो जाने दो ।
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यौवन सरिता का रत्नाकर से
निसर्ग मिलन हो जाने दो ।
रति और मनसिज सा
पावन परिणय हो जाने दो ।
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करुणा, विनय, माधुर्य का
निर्जर संगम हो जाने दो ।
जीवन सौंदर्य अंबर तक
बन उपवन महकाने दो ।
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कवि कुलवंत सिंह
Monday, July 2, 2007
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9 comments:
बढ़िया है भाई!!
बधाई हो आपके ब्लोग की शुरुआत की
बहुत अच्छी कविता :)
vednaa par itani kavitaa padra kar
bahut achchhaa lagaa
-Harihar
vednaa par itani BADIYAA kavitaa padra kar bahut achchhaa lagaa
-Harihar
अनिश्चितता से निश्चितता की और बढती हुयी सुन्दर रचना है कुलवन्त जी.. जब मन की वेदना, क्रंदन और विषाद बह जायेंगे तभी तो स्थान बनेगा प्रेम, स्नेह, मादकता और मिलन के लिये..
वेदना ही तो कविता का कारण और आधार होती है । बढिया कविताओं के लिए बधाई ।
भाषा का प्रयोग बहुत अच्छा है। काफी अच्छी काव्य रचना की है आपने। बधाई।
ati sundar rachna...kavita gahri hai...chayawaadi tatvon se poorna...
likte rahiye...
आप सभी मित्रों के शब्दों के लिए अति आभारी हूँ।
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