जो अच्छाईयाँ हैं तुममें -
सर्वत्र बिखेर दो !
महका दो -
गुलाब की तरह!
जो पाये -
अपना ले !
महक मिले जिसे -
बहक जाए !
बस अच्छाईयाँ बिखराए।
.
जो बुराईयाँ हैं तुममें -
उन्हें समेट लो !
दबा दो -
कफन में !
सुला दो -
चिर निद्रा में !
न उठने पाएं,
न दिखने पाएं,
न दूसरों को बहका पाएं!
.
कवि कुलवंत सिंह
Friday, June 22, 2007
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9 comments:
very very nice setiment and very nicely expressed also
अच्छी तुलना है कुलवंत जी, सार्थक रचना।
जो बुराईयाँ हैं तुममें -
उन्हें समेट लो !
दबा दो -
कफन में !
सुला दो -
चिर निद्रा में !
न उठने पाएं,
न दिखने पाएं,
न दूसरों को बहका पाएं!
वाह!!!
*** राजीव रंजन प्रसाद
बहुत ही सुन्दर रचना है.
मेरी ओर से बधाई.
सीधी सरल मगर सार्थक .... बेहद सुन्दर रचना है कुलवंत जी
अति सुन्दर! बधाई हो!
Oi, achei teu blog pelo google tá bem interessante gostei desse post. Quando der dá uma passada pelo meu blog, é sobre camisetas personalizadas, mostra passo a passo como criar uma camiseta personalizada bem maneira. Até mais.
आप सभी दोस्तों के प्रोत्साहन के लिए मै अति आभारी हूँ।
bahut hi achhi rachna aapki
burayi aur achhi ko batati hui aapki rachna bahut pasand aayi
aap ne es rachna me kamal ker diya he.
chandrapal
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