गीत प्रणय का अधर सजा दो ।
स्निग्ध मधुर प्यार छलका दो ।
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शीतल अनिल अनल दहकाती,
सोम कौमुदी मन बहकाती,
रति यामिनी बीती जाती,
प्राण प्रणय आ सेज सजा दो ।
गीत प्रणय का अधर सजा दो ।
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गीत प्रणय का अधर सजा दो ।
स्निग्ध मधुर प्यार छलका दो ।
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ताल नलिन छटा बिखराती,
कुंतल लट बिखरी जाती,
गुंजन मधुप विषाद बढाती,
प्रिय वनिता आभास दिला दो ।
गीत प्रणय का अधर सजा दो ।
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गीत प्रणय का अधर सजा दो ।
स्निग्ध मधुर प्यार छलका दो ।
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नंदन कानन कुसुम मधुर गंध,
तारक संग शशि नभ मलंद,
अनुराग मृदुल शिथिल अंग,
रोम रोम मद पान करा दो ।
गीत प्रणय का अधर सजा दो ।
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गीत प्रणय का अधर सजा दो ।
स्निग्ध मधुर प्यार छलका दो ।
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कवि कुलवंत सिंह
Friday, June 1, 2007
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10 comments:
आपने कविता में शब्दों के मोती इस तरह पिरोये हैं कि कविता का सस्वर पाठ अत्यन्त कर्णप्रिय लग रहा है।
वाह वाह कुलवन्त जी,
क्या बात है... बहुत बढिया रचना लिखी है आप ने...
मधुरता से ओतप्रोत है प्रणय गीत। हार्दिक बधाई
विवेक
बहुत सुन्दर रचना है।बधाई।
ताल नलिन छटा बिखराती,
कुंतल लट बिखरी जाती,
गुंजन मधुप विषाद बढाती,
प्रिय वनिता आभास दिला दो ।
गीत प्रणय का अधर सजा दो ।
नंदन कानन कुसुम मधुर गंध,
तारक संग शशि नभ मलंद,
अनुराग मृदुल शिथिल अंग,
रोम रोम मद पान करा दो ।
गीत प्रणय का अधर सजा दो ।
बहुत सुन्दर
अच्छा लगा आपका प्रणय गीत,...आप लिखते वक्त अत्यन्त भावुक हो गये लगता है...
बहुत सुंदर
सुनीता(शानू)
Lage Raho Kulvantji
आप सभी के शब्दों के लिए बहुत बहुत धन्यवाद। मैं अनुग्रहीत हुआ। सुनीता, मैं अपनी कविताएं लिखते समय प्राय: ही भावुक हो जाता हूँ।
कविअ कुलवंत सिंह
Very good poetry.
Tanveer Jafri
Kulwantsingh ji,
Bahut sundar rachana hai, aur aaj hamari vivah ki varshganth bhi hai.
Bahut dhayawad.
Abhivadan...
-Umesh Tambi
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