Wednesday, May 16, 2007

Prarthanaa!

प्रार्थना
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हे दुर्गे (मानव पर) अनुकंपा कर दो!
प्राणहीन तन अनुप्राणित कर दो,
सुषुप्त सद् विचार जागृत कर दो!
संकल्प सुदृढ़, साहस अदम्य,
उदात्त सद् भाव अंकुरित कर दो!
हो भारतीय संस्कृति, आस्था परिलक्षित
जन जन हृदय सुवासित कर दो!
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हे दुर्गे अनुकंपा कर दो!
जीवन आदर्श पुर्नस्थापित कर दो,
रूधिर स्वाभिमान संचरित कर दो!
सत्य, न्याय आत्मसात कर,
इनकी रक्षा को जीना सिखला दो!
सद् विचार औ जीवन मूल्यों से,
हृदय हर आप्लावित कर दो!
हे दुर्गे अनुकंपा कर दो!
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कवि कुलवंत सिंह

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