आत्मज्ञान
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मिटाकर अहंकार
करो परोपकार
मिथ्या है संसार
सत्य हॆ परमार्थ ।
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मिटाकर अहंकार
करो ज्योतिर्मय संसार
हो कीर्ति रश्मियों का विस्तार
जीवन हॆ सेवार्थ ।
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मिटाकर विकार
अर्थलोभ को नकार
हो जाओ ईश से एकाकार
रहो तत्पर ज्ञानार्थ
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मिटाकर मन का मालिन्य
दिलों में प्रेम को निखार
करो सत्य को साकार
हो सेवा निस्वार्थ
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कवि कुलवंत सिंह
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