नारी
.
मानव पर ऋण - नारी का।
नारी !
जिसने माँ बन -
जन्म दिया मानव को।
.
ईश्वर पर ऋण - नारी का।
ईश्वर!
जिसने जन्म लिया हर बार
एक माँ की कोख से।
.
प्रकृति पर ऋण - नारी का।
प्रकृति !
जिसने सौंपा यह महान उद्देश्य
नारी के हाथ।
.
.
कवि कुलवंत सिंह
Monday, May 28, 2007
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
2 comments:
स्वागत है आपका ब्लॉग जगत में आपका ।
कुलवत जी, आप की कविता पढ कर अच्छा लगा , नारी सच ही भगवान की बनाई अनमोल रचना है ।
Post a Comment