न कदर की तूने मेरी
कोई बात नही,
मेरे प्यार को आजमा के
देख लिया होता!
.
मेरे प्यार के आमंत्रण को
हंसी मे तुने उड़ाया,
न जाना था, ’प्यार क्या है?’
हमसे पूछ लिया होता!
.
कभी आँखों मे झाँककर
देख लिया होता,
या दिल मे उतर कर
महसूस किया होता!
.
धड़कनों से मेरी
तूने पूछ लिया होता,
या दर्पण में खुद को
कभी देख लिया होता!
.
कवि कुलवंत सिंह
Thursday, May 24, 2007
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
4 comments:
प्यार की एक तड़प इस कविता मे उजागर होती है।बहुत भावपूर्ण सुन्दर रचना है।
अच्छे भाव हैं. लिखते रहें
सुंदर भाव. बधाई!!
गहन संवेदना के पंक्षी है आप…इस कविता ने पूरी तरह से यह साफ कर दिया…मजा आ गया बधाई स्वीकार करो जी!!!
Post a Comment