जय जवान, जय किसान, जय विज्ञान,
प्राणों की आहुति दे देते, तत्पर सदा जवान,
भारत की इस बलि बेदी पर, कर में ले हथियार,
अगणित अमर जवानों ने बिछा दिये हैं प्रान,
आँच न आने दी भारत पर, छोड़ा सब संसार,
साक्षी है इतिहास, और जग करता सत्कार।
जय जवान, जय जवान, जय जवान।
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नव संसाधन मिले, हरियाली छायी देश में,
सहकारिता को बढ़ाया, खुशहाली छायी देश में,
अपनाई नई तकनीकें, कृषि के देश में,
खाद्यानों से परिपूर्ण भंडार भरे देश में,
स्वावलंबी बने हम, निर्यात भी करते हैं।
जय किसान, जय किसान, जय किसान।
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विज्ञान में पीछे नहीं अग्रिम चुने देशों में,
संभाव्य किया सब कुछ हमने जो मानव को प्राप्य,
विखंडन कर परमाणु का, असीमित ऊर्जा भंडार,
आर्यभट्ट, रोहिणी, एप्पल, इंसेट अंतिरक्ष में साकार,
भयकंपित रखते शत्रु को, नाग, पृथ्वी, आकाश।
जय विज्ञान, जय विज्ञान, जय विज्ञान।
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लेकिन क्या है कमी, जो भारत पिछड़ा देश!
करना आत्मचिंतन हमें, देना बंद कर उपदेश,
मुट्ठीभर कुछ राजनेता न बदल सकते परिवेश,
कोसना बंद करें उनको, जब आये आवेश,
हम लाखों बुद्धिजीवियों को वहन करना संदेश।
आज जरूरत हम सब की है, पुकारे भारत देश।
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कोटि कोटि जन तब होंगे साथ।
बढ़ेंगे आगे लिये फ़िर हाथों में हाथ।
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कवि कुलवंत सिंह
Sunday, May 20, 2007
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2 comments:
देश प्रेम की अच्छी रचना है।
जय हो बन्धु,
बढ़िया रचना हेतु बधाई।
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