शहीद - ए - आजम भगत सिंह - 3
हृदय विदारक दारुण क्रंदन,
परम पिता ने कर आलिंगन,
परम वंद्य आत्मा आवाहन,
भारत भेजा अपना नंदन .
बंगा लायलपुर जनपद में,
किसन, विद्यावती के घर में,
ईशा सन उन्नीस सौ सात,
सितंबर सत्ताइस की रात .
जन्म पुण्य आत्मा ने पाया,
क्रांतिकारियों के घर आया .
स्वतंत्रता के चिर सेनानी,
कुटुंब की थी यही कहानी .
सूर्य एक दमका था जग में,
भारत माता के आंगन में .
भाग्यवान बन आया था सिंह,
दादी बोली नाम भगत सिंह .
दादा अर्जुन सिंह वरदानी,
तीन पूत, तीनों सेनानी .
कूट कूट वीरता भरी थी,
सत्ता भी सहमने लगी थी .
पिता किसन सिंह की लड़ाई,
’भारत - सोसायटी’ बनाई .
उन पर डाले कई मुकदमें,
काटे ढ़ाई वर्ष जेल में .
वर्ष और दो नजरबंद थे,
गतिविधियों में पर दबंग थे .
डर कर चाचा अजीत सिंह से,
रंगून जेल भेजा यहाँ से .
दूजे चाचा स्वर्ण सिंह थे,
लाहौर सेंट्रल जेल बंद थे,
सही यातना, पर किया न गम,
सहते सहते तोड़ दिया दम .
दिखे पूत के पाँव पालने,
घर संस्कृति और माहौल ने,
बीज किये तन मन में रोपित,
देश प्रेम से अंतस शोभित .
खेल खेल में टीम बनाते,
अंग्रेजों को मार भगाते .
बने सभी बच्चों के लीडर,
गाते गीत गदर के जी भर .
चाची जब यादों में रोती,
मै हूँ ! चाची तूँ क्यों रोती ?
गोरों को मार भगाऊँगा,
चाचा को वापिस लाऊँगा .
खेल खेलता बंदूकों के,
रोपे धरती घास के तिनके .
नंद किशोर मेहता आये,
पूछे बिना वह रह न पाये .
’बाल भगत! यह क्या करते हो ?
धरती तिनके क्यों बोते हो ?’
’धरती बंदूक उगाऊँगा,
क्रांतिकारियों को बाटूँगा .
राष्ट्र को स्वतंत्र कराऊँगा,
जन जन में प्राण जगाऊँगा .’
बात भगत की सुन दिल झूमा,
गले लगा कर माथा चूमा .
गोरों का युग निकृष्ट प्रहार,
जगती का क्रूरतम संहार .
नि:शस्त्र सभा जलियाँवाला
कई सहस्त्र को भून डाला .
बारह वर्ष की थी अवस्था,
सुना बगत का ठनका मत्था .
वह पैदल बारह मील चले,
जलियाँ वाला बाग में पहुँचे .
रक्त रंजित मिट्टी उठाकर,
चूमा उसको भाल लगाकर .
शीशी में संभाल सहेजना,
प्राण प्रतिज्ञा से अराधना .
कवि कुलवंत सिंह
Sunday, March 14, 2010
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
No comments:
Post a Comment