ओ मेरे प्रीतम मनबसिया
तेरी याद सताए रंगरसिया
निखरी है चेहरे पर रंगत
कहां छुपा है रंगरलिया .
मिलन वह अपना पहला पहला
पलकों का उठ उठ गिरना
बेकाबू धड़कन का होना
मुझको निहारें तोरी अखियां .
दिल से दिल के जाम मिले
खामोशी से लब सिले
दो तन मिल इक प्राण हुए
प्यार में तोरे सद के जिया .
दिल पर कैसे काबू करूँ
तन्हा खुद से बातें करूँ
मौसम फिर है बहका बह्का
क्यूँ हो सताते आओ पिया .
फागुन के रंग बिखरे बिखरे
मदहोशी का बहता दरिया
लाज के मारे कुछ न बोलूँ
गले लगा ले ओ मन रसिया .
कवि कुलवंत सिंह
Thursday, July 30, 2009
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5 comments:
वाकई सुनहरा गीत है कुलवंत साहिब.. बहोत पसंद आया... बहोत बहोत बधाई साहिब...
अर्श
kulwant ji manbhavan geet ke liye badhaai sweekaren.
सावन का महीना और इतना बढ़िया गीत,
कवि कुलवंत सिंह को
बधाई।
bahut sundar rachanaa hai.
saawan ke maah me baarish ki fuhaar barsaata hua aapka ye geet . wwah sir ji .. dil se badhai ...
aabhar
vijay
pls read my new poem "झील" on my poem blog " http://poemsofvijay.blogspot.com
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