शैदाई समझ कर जिसे था दिल में बसाया ।
कातिल था वही उसने मेरा कत्ल कराया ॥
दुनिया को दिखाने जो चला दर्द मैं अपने,
हर घर में दिखा मुझको तो दुख दर्द का साया ।
किसको मैं सुनाऊँ ये तो मुश्किल है फसाना
दुश्मन था वही मैने जिसे भाई बनाया ।
मैं कांप रहा हूँ कि वो किस फन से डसेगा,
फिर आज है उसने मुझसे प्यार जताया ।
आकाश में उड़ता था मैं परवाज़ थी ऊँची,
पर नोंच मुझे उसने जमीं पर है गिराया ।
गीतों में मेरे जिसने कभी खुद को था देखा,
आवाज मेरी सुन के भी अनजान बताया ।
कांधे पे चढ़ा के उसे मंजिल थी दिखाई,
मंजिल पे पहुँच उसने मुझे मार गिराया ।
शैदाई= चाहने वाला, पर = पंख, परवाज = उड़ान
कवि कुलवंत सिंह
Thursday, October 16, 2008
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16 comments:
बेहतरीन भाई...बहुत सही!!!
मैं कांप रहा हूँ कि वो किस फन से डसेगा,
फिर आज है उसने मुझसे प्यार जताया ।
वाह , बेहतरीन.
किसको मैं सुनाऊँ ये तो मुश्किल है फसाना
दुश्मन था वही मैने जिसे भाई बनाया ।
bahut sunder aur sateek , hamesha ki tarah behtreen
मैं कांप रहा हूँ कि वो किस फन से डसेगा,
फिर आज है उसने मुझसे प्यार जताया ।
बेहतरीन.
मैं कांप रहा हूँ कि वो किस फन से डसेगा,
फिर आज है उसने मुझसे प्यार जताया ।
बहुत खूब ..बढ़िया लगी आपकी यह गजल
शैदाई समझ कर जिसे था दिल में बसाया ।
कातिल था वही उसने मेरा कत्ल कराया ॥
" very touching and touching creation..excellent"
Regards
भाई कुलवंत जी,
आपकी ग़ज़ल के सभी शेर एक से बढ़ कर एक हैं, तारीफ करते हुए डर रहा हूँ , क्योकि आपकी ही एक ग़ज़ल का एक शेर कह रहा है..........
मैं कांप रहा हूँ कि वो किस फन से डसेगा,
फिर आज है उसने मुझसे प्यार जताया ।
मेरी तारीफ आपके लिए मेरा प्यार ही है.
चन्द्र मोहन गुप्त
Aap sabhi mitron ka dher saara pyaar mila...
man me taaji hawa ka ek jhonka chala...
बेहतरीन
bahut khoob
बहुत ही बढिया रचना है।बधाई स्वीकारें।
अछ्ची रचना है आपकी
kya bat hai bhai.khoob likhte ho yaar!
ज़रूर पढिये,इक अपील!
मुसलमान जज्बाती होना छोडें
http://shahroz-ka-rachna-sansaar.blogspot.com/2008/10/blog-post_18.html
अच्छा अंदाज़ है !
आपको सपरिवार दीपावली व नये वर्ष की हार्दिक शुभकामनाये
agai very nice!!!!!!!!!!!!
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