Thursday, June 19, 2008

गीत - आओ दीप जलाएँ

आओ खुशी बिखराएँ छाया जहां गम है ।
आओ दीप जलाएँ गहराया जहाँ तम है ॥

एक किरण भी ज्योति की
आशा जगाती मन में;
एक हाथ भी कांधे पर
पुलक जगाती तन में;

आओ तान छेड़ें, खोया जहाँ सरगम है।
आओ दीप जलाएँ गहराया जहाँ तम है ॥

एक मुस्कान भी निश्छल
जीवन को देती संबल;
प्रभु पाने की चाहत
निर्बल में भर देती बल;

आओ हंसी बसाएँ, हुई आँखे जहां नम हैं।
आओ दीप जलाएँ गहराया जहाँ तम है ॥

स्नेह मिले जो अपनो का
जीवन बन जाता गीत;
प्यार से मीठी बोली
दुश्मन को बना दे मीत;

निर्भय करें जीवन जहाँ मनु गया सहम है।
आओ दीप जलाएँ गहराया जहाँ तम है ॥

कवि कुलवंत सिंह

7 comments:

Rachna Singh said...

आओ हंसी बसाएँ, हुई आँखे जहां नम हैं।
आओ दीप जलाएँ गहराया जहाँ तम है ॥


bahut sunder

कंचन सिंह चौहान said...

अच्छे विचार...अच्छी कविता

Udan Tashtari said...

बहुत बढ़िया भाव!!!

Kavi Kulwant said...

रचना जी, कंचन जी, समीर जी..
आपका हार्दिक आभार...

शेरघाटी said...

आखिर मिल गए आप .सरसरी कई चीज़ें देख गया .इत्मिनान से पढूंगा.लेकिन इतना तो नज़र आ ही गया कि भाई हमारे आपमें विकट विचार श्रृंखलाएं हैं और कहने के अंदाज़ का भी उत्तरोतर विकास हो रहा है .आपकी उज्जवल काविशों और कोशिशों के लिए अनगिनत नेक दुआएं और शुभकामनायें !

shalu said...

haa ji kavi sahab aapki is tam hatane kee aandolan mei hamara naam bhi shhmil kar lijiye kushkismati hoge isi tarah ke vichar hai ki
jalao diye par rahe dhyan itna andehraa dhara par kahin rah naa jayee

!!अक्षय-मन!! said...

meri pasandida kavita bahut hi sundar lagti hai....