आओ खुशी बिखराएँ छाया जहां गम है ।
आओ दीप जलाएँ गहराया जहाँ तम है ॥
एक किरण भी ज्योति की
आशा जगाती मन में;
एक हाथ भी कांधे पर
पुलक जगाती तन में;
आओ तान छेड़ें, खोया जहाँ सरगम है।
आओ दीप जलाएँ गहराया जहाँ तम है ॥
एक मुस्कान भी निश्छल
जीवन को देती संबल;
प्रभु पाने की चाहत
निर्बल में भर देती बल;
आओ हंसी बसाएँ, हुई आँखे जहां नम हैं।
आओ दीप जलाएँ गहराया जहाँ तम है ॥
स्नेह मिले जो अपनो का
जीवन बन जाता गीत;
प्यार से मीठी बोली
दुश्मन को बना दे मीत;
निर्भय करें जीवन जहाँ मनु गया सहम है।
आओ दीप जलाएँ गहराया जहाँ तम है ॥
कवि कुलवंत सिंह
Thursday, June 19, 2008
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7 comments:
आओ हंसी बसाएँ, हुई आँखे जहां नम हैं।
आओ दीप जलाएँ गहराया जहाँ तम है ॥
bahut sunder
अच्छे विचार...अच्छी कविता
बहुत बढ़िया भाव!!!
रचना जी, कंचन जी, समीर जी..
आपका हार्दिक आभार...
आखिर मिल गए आप .सरसरी कई चीज़ें देख गया .इत्मिनान से पढूंगा.लेकिन इतना तो नज़र आ ही गया कि भाई हमारे आपमें विकट विचार श्रृंखलाएं हैं और कहने के अंदाज़ का भी उत्तरोतर विकास हो रहा है .आपकी उज्जवल काविशों और कोशिशों के लिए अनगिनत नेक दुआएं और शुभकामनायें !
haa ji kavi sahab aapki is tam hatane kee aandolan mei hamara naam bhi shhmil kar lijiye kushkismati hoge isi tarah ke vichar hai ki
jalao diye par rahe dhyan itna andehraa dhara par kahin rah naa jayee
meri pasandida kavita bahut hi sundar lagti hai....
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