Wednesday, April 16, 2008

दोहा - सच

सच की अर्थी ढ़ो रहा, ले कांधे पर भार ।
पहुंचाने शमशान भी, मिला न कोई यार ॥

कवि कुलवंत सिंह

6 comments:

ghughutibasuti said...

बहुत बढ़िया !
घुघूती बासूती

Alpana Verma said...

sundar!

Anonymous said...

wah bahut bahiya

Anonymous said...

wah bahut badhiya

Kavi Kulwant said...

Thanks Dear friends!..

Unknown said...

पता नहीं कवि कुलवंत जी किस तरह से ये दोहे बना लेते है. वर्त्तमान युग में भी कोई ऐसा रचनाकार है जो अर्थयुक्त दोहे बना लेता हो तो, कवि कुलवंत जी उन्मेसे एक हैं.