Tuesday, March 25, 2008

रंग होली के

रंग होली के कितने निराले,
आओ सबको अपना बना लें,
भर पिचकारी सब पर डालें,
पी को अपने गले लगा लें ।

रक्तिम कपोल आभा से दमकें,
कजरारे नैना शोखी से चमकें,
अधर गुलाबी कंपित दहकें,
पलकें गिर गिर उठ उठ चहकें ।

पीत अंगरिया भीगी झीनी,
सुध बुध गोरी ने खो दीनी,
धानी चुनर साँवरिया छीनी,
मादकता अंग अंग भर दीनी ।

हरे रंग से धरा है निखरी,
श्याम वर्ण ले छायी बदरी,
छन कर आती धूप सुनहरी,
रंग रंग की खुशियाँ बिखरीं ।

नीला नीला है आसमान,
खुशियों से बहक रहा जहान,
मस्ती से चहक रहा इंसान,
होली भर दे सबमें जान ।

kavi kulwant singh

2 comments:

Anonymous said...

होली जान है
जहान है होली

कवि जी एक मेल भेजी थी आपको उसका उत्‍तर नहीं मिला, कहीं ऐसा तो नहीं हुआ कि स्‍पैम में चली गई हो. दोबारा भेजूं या तलाश लेंगे.
अविनाश वाचस्‍पति

सुनीता शानू said...

कुलवन्त जी कैसे हैं आप? कहाँ है आजकल?

होली की मुबारक बाद जी॥
कविता बहुत अच्छी रसभरी है जी...:)