Monday, December 31, 2007

भारत

अरुण प्रभात किरणें प्रथम
चूमतीं हिंद भाल अप्रितम,
करतीं आदित्य रश्मियाँ
सृष्टि का अभिषेक प्रथम ।

हिम शैल श्रृंगों से
अवतरित हो अप्सरा सी,
झूमती मद नर्तन करतीं
आलोक फ़ैलातीं पफ़ुल्ल सी ।

नैसर्गिक सौंदर्य छटा निराली
गूंजते स्वर देवालयों से,
ईश स्तुति, अर्चन, आरती
हिंद के हर नगर से ।

शंखों का पावन नाद
स्पंदित घंटों का निनाद,
डोलते देवों के सिंहासन
भक्तों का अतिरेक उन्माद ।

कान्य कुमारी की सुषमा
मन देख - देख हर्षाता,
तीन दिशा में विस्तृत जलनिधि
बंग, अरब, हिंद लहराता ।

अरुणोदय और अस्तांचल
चरणों में शीश नवाता,
तीन सागरों का संगम
मिल रज - चरण बाँटता ।

मंदाकिनी, कालिंदी, नर्मदा
शोभित करतीं हिंद धरा,
कावेरी, कृष्णा, महानदी
हरित सिंचित उपजाऊ धरा ।

छलका अमृत जहाँ वसुधा
विश्व ख्याति पावन महत्ता,
उज्जैन, नासिक, प्रयाग, हरिद्वार
महाकुंभ तीर्थ लगता ।

जनक विश्व सभ्यता का
हड़प्पा, मोहन-जोदाड़ो का,
शून्य की उत्पत्ति का
प्राचीनतम भाषा संस्कृत का ।

वेदों, उपनिषद, पुराणों का
रामायण, महाभारत, गीता का,
भाष्कर, मिहिर, आर्यभट्ट का
सुश्रुत, जीवक, चरक का ।

पूर्ण विश्व को पाठ पढ़ाया
दर्शन, संस्कृति, अध्यात्म,
ज्ञान, भक्ति, कर्म त्रिवेणी
अच्युत बहती धारा परमार्थ ।

धर्मों, संस्कृतियों का अद्भुत संगम
पल्लवित अनेक मत संप्रदाय,
विभिन्न मत धाराएं मिलीं
बनी एक - प्राण पर्याय ।

विस्मित करती पुरा वास्तुकला
उन्न्त था इतना विज्ञान,
समृद्ध कला, कारीगरी
विश्व करता था सम्मान ।

विद्वानों, वीरों की पुन्य धरा
ज्ञानी, दृष्टा, ॠषि, महात्मा,
बद्री, द्वारका, पुरी, रामेश्वर
हर धाम बसा परमात्मा ।

संघर्ष, सवार्थ, अहंकार, मद
परित्याग का दिया संदेश,
सत्य, अहिंसा, त्याग मर्म
विश्व ने पाया उपदेश ।

तेरी गोद जन्म एक वरदान
माँ स्वीकारो कोटि प्रणाम,
जननी जन्मभूमि स्वर्ग समान
अभिनंदन भूमि लोक कल्याण ।

कवि कुलवंत सिंह

5 comments:

परमजीत सिहँ बाली said...

बढिया रचना है।आप की रचना ने पूरा भारत दर्शन करा दिया।


तेरी गोद जन्म एक वरदान
माँ स्वीकारो कोटि प्रणाम,
जननी जन्मभूमि स्वर्ग समान
अभिनंदन भूमि लोक कल्याण ।

Anonymous said...

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आलोक साहिल said...

बहुत ही प्यारी कविता सर जी.
नव वर्ष मंगलमय हो
आलोक सिंह "साहिल"

सुनीता शानू said...

बहुत सुन्दर रचना...

आपको व आपके पूरे परिवार को नया साल मुबारक हो...

रश्मि प्रभा... said...

अपना देश भारत .....एक सच्चे नागरिक की अप्रतिम दृष्टि...
पर एक सत्य यह भी-
क्या था भारत?
क्या है भारत?
क्या होगा भारत?
इस बात का इल्म नहीं !!!
धर्म-निरपेक्षता तो भाषण तक है,
हर कदम बस वाद है...