Wednesday, November 7, 2007

झंकृत

झन - झन झंकृत हृदय आज है
वपु में बजते सभी साज हैं ।
पी आने का मिला भास है
मिटेगा चिर विछोह त्रास है ।

मंद - मंद मादक बयार है
खिल प्रकृति ने किया शृंगार है ।
आनन सरोज अति विलास है
कानन कुसुम मधु उल्लास है ।

अंग - अंग आतप शुमार है
देह नही उर कि पुकार है ।
दंभ, मान, धन सब विकार है
प्रेम ही जीवन आधार है ।

रोम - रोम रस, रुधित राग है
मिला जो तेरा अनुराग है ।
मन सुरभित, तन नित निखार है
नभ - मुक्त, तल नव विस्तार है ।

घन - घन घोर घटा अपार है
संग तुम मेरा अभिसार है ।
अनंत चेतना का निधान है
मिलन हमारा प्रभु विधान है ।

कवि कुलवंत सिंह

6 comments:

परमजीत सिहँ बाली said...

बहुत सरस रचना है..पढ कर आनंद आ गया। बधाई।
घन - घन घोर घटा अपार है
संग तुम मेरा अभिसार है ।
अनंत चेतना का निधान है
मिलन हमारा प्रभु विधान है ।

पारुल "पुखराज" said...

sundar rachnaa.....achhi lagii

Udan Tashtari said...

बहुत बढ़िया, कुलवंत जी.

Anonymous said...

deepawali shubh ho
rachna

Anonymous said...

SARDAR KULWANT JI MAHARAJ AAP MERE SE NARAZ HAI KYA AAPNE MERA PICHAL COMMENT KAYOON DELITE KAR DIYA.
APKI RACHNA APARMPAR HAI AAP MAHAN HO, PAR MERE JODO KE DARD KI DAWAI JAROOR E MAIL KAR KE BAAATA DEJIYE GA
AAPKA BHAVDIYEE
VIKRAM SAXENA

Kavi Kulwant said...

vikram ji maine aap ka yan kisi ka bhi koi comment delete nahi kiya???
khan par? mere priya dost?