Tuesday, August 21, 2007

प्रकृति

सावन का महीना, प्रकृति की सुंदरता, बरसात.. इस मौसम में एक कविता प्रस्तुत है॥

प्रकृति

सतरंगी परिधान पहन कर,
आच्छादित है मेघ गगन,
प्रकृति छटा बिखरी रुपहली,
चहक रहे द्विज हो मगन ।

कन - कन बरखा की बूंदे,
वसुधा आँचल भिगो रहीं,
किरनें छन - छन कर आतीं,
धरा चुनर है सजो रहीं ।

सरसिज दल तलैया में,
झूम - झूम बल खा रहे,
किसलय कोंपल कुसुम कुंज के,
समीर सुगंधित कर रहे ।

हर लता हर डाली बहकी,
मलयानिल संग ताल मिलाये,
मधुरिम कोकिल की बोली,
सरगम सरिता सुर सजाए ।

कल - कल करती तरंगिणी,
उज्जवल तरल धार संवरते,
जल-कण बिंदु अंशु बिखरते,
माणिक, मोती, हीरक लगते।

मृग शावक कुलाँचे भरता,
गुंजन मधुप मंजरी भाता,
अनुपम सौंदर्य समेटे दृष्य,
लोचन बसता, हृदय लुभाता ।

कवि कुलवंत

5 comments:

परमजीत सिहँ बाली said...

कुलवंत जी, आप की रचना पढकर मन खुश हो जाता है। क्यूँकि आप की रचनाए एकदम नपी-तुले शब्दो मे लिखी होती हैं ।इस लिए बार-बार पढने को मन करता है।

कल - कल करती तरंगिणी,
उज्जवल तरल धार संवरते,
जल-कण बिंदु अंशु बिखरते,
माणिक, मोती, हीरक लगते।

Udan Tashtari said...

बहुत बढ़िया, कुलवंत जी.

सुनीता शानू said...

बहुत सुन्दर कुलवन्त जी एक तो यह रचना दूजे संगीत लहरी क्या बात है मन को मोह लिया...

शानू

Kavi Kulwant said...

बाली जी, समीर जी, सुनीता जी.. आप यहाँ आए .. मुझे बहुत अच्छा लगा। आप ने प्रतिक्रिया दी, बहुत ही अच्छा लगा..इसी तरह मुझे आप के स्नेह और प्यार से सराबोर करते रहिए...कवि कुलवंत

Unknown said...

kulbant ji apke kabita ne meri bohot help ki .......mai class 8th ki student hu n mere skul se mere teacher ne nature ke uper kabita collect karne ke liye kaha tha aur apki kabita usme se 1 hai............dhanyabad