Monday, August 13, 2007

छेड़ो तराने आज फिर

छेड़ो तराने...

छेड़ो तराने आज फिर झूमने का मन कर आया है...
सूने दिवस थे, सूने रैना,
सूने उर में गहन वेदना,
सूने पल थे सुने नैना,
सूने गात में सुप्त चेतना।

अभिलाषाओं ने करवट ली,
करुणा से पलकें गीलीं ।
छेड़ो तराने आज फिर झूमने का मन कर आया है...

सुप्त भाव थे, सुप्त विराग,
मरु जीवन में सुप्त अनुराग,
तमस विषाद, वंचित रस राग,
नीरव व्यथा, था कैसा अभाग ?

दिग दिगंत आह्लाद निनाद,
दिव्य ज्योति हलचल प्रमाद ।
छेड़ो तराने आज फिर झूमने का मन कर आया है...

मौन क्रंद था, मौन संताप,
मौन पमोद, राग आलाप,
मौन दग्ध दुख मौन प्रलाप,
अंतस्तल में मौन ही व्याप ।

आशा रंजित मंगल संसृति,
हर्षित हृदय, झलक नवज्योति।
छेड़ो तराने आज फिर झूमने का मन कर आया है...

तिमिर टूटा, निद्रा पर्यंत,
सकल वेदना का कर अंत,
पुलकित भाव घनघोर अनंत,
उन्मादित थिरकते पांव बसंत।

स्मृतियां विस्मृत, सजल नयन,
अभिनव परिवर्तन झंकृत जीवन।
छेड़ो तराने आज फिर झूमने का मन कर आया है...

कवि कुलवंत सिंह

4 comments:

Rachna Singh said...

nice words , nice expressions
vande matram

ghughutibasuti said...

छेड़ो तराने आज फिर झूमने का मन कर आया है...
आपने तो कितने सारे कारण ढूँढ लिए झूमने के लिए । अच्छी रचना है ।
घुघूती बासूती

Udan Tashtari said...

बढ़िया है रचना. बधाई.

आशीष "अंशुमाली" said...

अभिलाषाओं ने करवट ली,
करुणा से पलकें गीलीं ।
छेड़ो तराने आज.....
बहुत सुन्‍दर कविता है, कुलवंत जी।
बधाई स्‍वीकारें।