हाल फिलहाल एक हुआ तमाशा,
दुनिया वालों दो ध्यान जरा सा।
विश्व में नए अजूबे चुने गए,
एस एम एस से वोटिंग किए गए।
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करोड़ों का हुआ वारा - न्यारा,
देकर वास्ता इज्जत का यारा।
भोली जनता को बनाया गया,
ताज के नाम पर फंसाया गया।
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मीडिया भी बेफकूफ बन गई,
वह भी ताज के पीछे पड़ गई।
जनता से सबने गुहार लगाई,
जितने चाहो वोट दो भाई।
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वोट के नाम पर खूब कमाया,
भीख मांगने का नया तरीका पाया।
अरे भाई! ताज कहाँ अजूबा है ?
वहाँ तो सोई बस एक महबूबा है!
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आज के युग में कितनी तरक्की है,
ट्रेनें, हवाई-जहाज, सड़क पक्की है।
राकेट, मिसाईल, कारें, सितारा होटल हैं,
खुलती दिन रात जहाँ शैंपेन बोटल हैं।
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आओ दिखाता हूँ मै आपको सच्ची अजूबे,
प्रगति के दौर के ये हैं असली अजूबे।
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विश्व का प्रथम अजूबा - ध्यान दें !
मुंबई की लोकल ट्रेन में सफर कर दिखला दें!
कोई माई का लाल साबित कर दे,
इससे बड़ा अजूबा दुनिया में दिखा दे।
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आओ दिखाता हूँ मैं आपको सच्ची अजूबे,
प्रगति के दौर के ये हैं असली अजूबे।
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दूसरा अजूबा भी हमारे देश में,
नजरें उठा कर देख लो किसी भी शहर गली में।
कचरे के डब्बों से खाना ढ़ूंढ़ता आदमी,
उसी को खा कर अपनी भूख मिटाता आदमी।
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आओ दिखाता हूँ मै आपको सच्ची अजूबे,
प्रगति के दौर के ये हैं असली अजूबे।
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तीसरा अजूबा - कीड़ों सा रेंगता आदमी,
स्लम, फुटपाथ, ट्रैक पर जीवन बिताता आदमी।
सड़कों पर सुबह, लोटा लेकर बैठा आदमी,
देखिए अजूबा, मजबूर कितना आदमी।
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और भी कितने अजूबे हैं हमारे देश में,
एक एक कर गिनाना है न मेरे बस में।
एक एक कर गिनाना है न मेरे बस में॥
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कवि कुलवंत सिंह
Monday, July 30, 2007
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9 comments:
कुलवंत जी,आप की रचना एक सच का आईना बन कर सामने आई है। यही आज की सच्चाई है। बहुत पसंद आइ अप की रचना।बौत-बहुत बधाई।
करोड़ों का हुआ वारा - न्यारा,
देकर वास्ता इज्जत का यारा।
भोली जनता को बनाया गया,
ताज के नाम पर फंसाया गया।
शुक्रिया कवि महोदय आपको गज़ल पसंद आई..और अपने ब्लोग पर भी आपने मुझे स्थान दिया...
बहुत अच्छा लगा दुनियाँ के असली अजूबे पढ़कर...
हमारे देश का असली अजूबा यही है तो है,
भूखमरी,बेकारी,भ्रष्टाचार...नित नये अजूबो से देश अलंकृत हुआ जाता है...
शानू
कुलदीप जी
मीडिया बेवकूफ नहीं बनी. उसने भी माल कमाया है.
बिल्कुल सही है आदमी से बड़ा अजूबा तो कोई हो ही नही सकता है जो हर हाल मे मूर्ख बनता है।
Kuldip ji,
jis tarah se aapne ajube dikaye kabile tarif hai. ummed hai aapki lekhani se aur ajube dekhane ko milenge
shrddha jain
Sach kaha hai yaha door baithe hum bhi yahi soch rahe the ki kis kis tarah
se log aaj apne fayde ke liye bewakoof bana rahe hain
bahut achha likha hai kulvant singh ji ne
thnx
बहुत अच्छे कुलवंत जी.. दिल को झकझोर दिया आपकी कविता ने.. तपन शर्मा "अंग्रेज़ी की ए बी सी पता है पर हिंदी का क ख ग नहीं..कभी सोचा है आपने, अपनी ही भाषा का तिरस्कार कर रहे हैं हम!!!
तपन शर्मा
आप सभी का हृदय से आबारी हूँ.. इसी तरह मेरा हौसला बढ़ाइये, आते रिहे और मुझे दिशा दिखाते रहिए..कवि कुलवंत
बहुत सही और सच लिखा है आपने कवि ज़ी अच्छा लगा पढ़ना
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