सूर्यास्त ...
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डूबते सूर्य को देखा!
सुर्ख़, लाल, रक्त आभा।
जैसे जैसे डूबता-
और रक्तिम होता जाता।
शायद अहसास दिलाता
अपनी उपस्थिति का।
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डूबते डूबते भी -
रश्मियां बिखराता जाता।
महापुरुषों सा -
कुछ दे कर जाता।
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कवि कुलवंत
Thursday, July 19, 2007
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2 comments:
अति सुन्दर....
कम शब्दों में सुन्दर व्याख्या
यूँ ही लिखते रहें...
बहुत बढिया रचना है,,,कम शब्दों में,एक संदेश देती हुई-
डूबते डूबते भी -
रश्मियां बिखराता जाता।
महापुरुषों सा -
कुछ दे कर जाता।
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