Tuesday, June 5, 2007

कौन ?

जीवन एक है,
प्रश्न अनेक हैं,
दुनिया चल रही है,
चलती रहेगी यूँ ही।
इन प्रश्नों को लेकिन सुलझाएगा कौन ?
.
प्रश्न एक है,
समाधान अनेक हैं,
दुनिया व्यस्त है,
अपने आप में मस्त है।
उचित समाधान लेकिन बताएगा कौन ?
.
समाधान एक है,
सत्य भी एक है,
उद्देश्य भी एक है,
राह भी एक है।
लेकिन इस राह पर चल कर दिखाएगा कौन ?
.
कवि कुलवंत सिंह

8 comments:

Unknown said...

दुनिया

अजीब शहर...

हर पहर...
डगर डगर...
एक मगर...
कुछ पल ठहर...
फिर कहर...
....एक अगर....
फिर मगर...
दवा कभी....
कभी ज़हर....
कहीं नहर...
कहीं लहर...
पर हर पल...
अगर....मगर...

Satyendra Prasad Srivastava said...

अच्छी है लेकिन लब्बोलुआब यही कि सवाल का जवाब ही नहीं मिलता।

Anonymous said...

जीवन एक है- यह पंक्ति बहुत अच्‍छी लगी।
पूरी कविता सराहनीय है।
कुमार आशीष

Anonymous said...

और कौन ? व्‍यक्ति खुद । व्‍यक्ति को अपनी यात्रा अकेले ही करनी पडती है - अच्‍छी खासी भीड में । जितनों को, जिना साथ मिल जाए - अपना भाग्‍य । दुख ही शाश्‍‍वत, सनातन, स्‍थायी सत्‍य है । इसीलिए 'सुख के सब साथी, दुख में न कोई । ' आप तो कवि हैं - जमाने भर का दर्द पीने को अभिशप्‍त । 'कवि' तो ईश्‍वर का सर्वाधिक प्रिय पात्र है जिसके माध्‍यम से वह अपनी इच्‍छाएं पूरी कराता है । आप तो कबीर के वंशज हैं जिसने कहा था -

कबिरा जब पैदा हुआ, जगत हसा खुद रोय ।
ऐसी करनी कर चलो, आप हंसों जग रोय ।।
आपकी कविता सचमुच में सुन्‍दर है । कविता आपकी है लेकिन बात मेरी है ।
मेरी न्‍यौछावर कबूल करें ।
Vishnu Bairagi

ghughutibasuti said...

सुन्दर कविता है । हाँ, जीवन स्वयं एक प्रश्न है ।
घुघूती बासूती

Anonymous said...

आप के प्रणय गीत को पढ़ कर हमने कुछ लिखा था। कृपया पढ़ने का कष्ट करें।

Anonymous said...

कुलवन्त जी:
सशक्त और अच्छे सवाल उठाती हुई कविता है ।
बधाई
अनूप

सुनीता शानू said...

कवि साहब बडे़ अच्छे प्रश्न उठाये है आपने...
वैसे जीवन खुद ही एक प्रश्न है, जीवन ही आपके प्रश्नो का समाधान है...और चलना भी आप ही को है..उसी राह पर जो आपको जिन्दगी दिखा रही है...

सुनीता(शानू)