16. साजन घर आये हैं
पी जो मिले मुझको
सुध बुध बिसराए हैं
17. दीदार हुए रब के
अब है किसे पाना
बलिहार गया सद के
18. तेरा मुझसे नाता
दर्द का है रिश्ता
संग आँसू बहा जाता
19. फूलों पर हैं भंवरे
चाह रहे पीना
मधु रस सब हंस हंस के
20. खामोश हैं दिलबर क्यों
राज है कुछ लगता
गहरे हैं छिपाए ज्यों
21. लालच न मिटे दिल से
पांव है इक कब्र में
दिन रात गिने पैसे
22. रब को भज ले बंदे
फिर न मिले मौका
सब काम मिटा गंदे
23. करतूत हईं आदम की
शर्म से गड़ जातीं
नज़रें परमातम की
24. मिट्टी के बने हैं घर
खोखले हैं इंसां
गिर जाते हैं भुर-भुर कर
25. आदम है गिरा इतना
नोच रहा बन गिद्ध
शैतान बना कितना
26. है आग लगी जन्नत
दिक न रहा धुआं
इंसां है हुआ उन्न्त
27. ज़िंदों को हैं खा जाते
आज के यह इंसां
कागा हैं लजा जाते
28. फूलों से मिला धोखा
यार बनाने को
कांटों को है अब रोका
29. बेटे का बसाने घर
कुदरत भी कांपी
बेटी का उजाड़ा घर
30. बर्बाद किया मुझको
कांप रही धरती
रब क्या दे सज़ा उनको
कवि कुलवंत सिंह
Thursday, May 20, 2010
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8 comments:
are waah khoobsoorat triveniya
बहुत सुन्दर क्षणिकाएँ!
sunder rachnaen.
सुन्दर क्षणिकाएं.
---क्या साज़न और पी अलग अलग अलगथे? --बलिहारी और सदके एक ही शब्द है,
अच्छी सूक्तियां हैं.
ati sunder rachnaen hai aap ese hi likhte rahe.
Jagdeep Gill
ati sunder rachnaen hai aap ese hi likhte rahe.
Jagdeep Gill
फूलों से मिला धोखा
यार बनाने को
कांटों को है अब रोका
wah, bahut khoob
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