करुण क्रंदन से आह संपूर्ण विश्व है रोता,
जग में भरी व्यथाओं की ज्वाला में है जलता,
तम की गहन गुफा में, निस्तब्ध गगन के नीचे,
घुट-घुट कर सिसक-सिसक कर जीवन क्योंहै रोता !
धूमिल होती आशाएं, परिचय बना रुदन है,
निष्ठुर निर्दयी नियति म्लान हुआ जीवन है,
स्मृतियां बहतीं रहीं अश्रु बन अविरल जलधारा,
द्रवित होता हृदय नही, पाषाण बना नलिन है ।
हिम बन माहुर जमा रक्त, उर में नही तपन है,
प्रणय डोर जब टूट चली, रोता कहीं मदन है,
निश्वास छोड़ता सागर, नीरव व्याकुल लहरें,
दर्द से व्यथित वेदना, पीड़ा सहती जलन है ।
काल बना निर्मोही, सजा रहा मुस्कान कुटिल,
अट्टहास करती तृष्णा, बन गया मानव जटिल,
प्रलय घटा घनघोर, अवसाद विक्षुब्ध खड़ा है,
उलझा मौन रहस्य, अभिशापित लहरें फेनिल ।
कवि कुलवंत सिंह
Thursday, July 10, 2008
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6 comments:
निश्वास छोड़ता सागर, नीरव व्याकुल लहरें,
दर्द से व्यथित वेदना, पीड़ा सहती जलन है .
bahut sundar abhivaykti.abhaar.
उत्तम , सुन्दर
मेरा ब्लॉग भी आप देख कर मुझे अनुग्रहित करे
कुलवन्त जी
बहुत-बहुत बधाई।
shabd nahi is uchi racna ke liye bahut hi marmik rachna hai....
aapki kalam ki takat ko darshati hai..
बहुत ही सुंदर साहित्यिक छंदोबद्ध कविता के दर्शन हुए । सच में आनंद आ गया । धन्यवाद् !
Dil ko cho dene wali kavita hai....
aap hindi kavita me hindustan ka naam meprakash de rahe hain
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