शून्य में झांका ?
देखा !
क्या है उसके अंदर ?
शून्य सिर्फ़ शून्य नही है !
शून्य है -
उद्गम सृष्टि का ।
शून्य है -
अंतरिक्ष,
जो विस्तारित है -
अंतहीन अनंत;
शून्य है -
स्रोत अनंत का ।
शून्य जिससे उद्भव -
खगोल, ब्रह्मांड,
नक्षत्र, ग्रह, तारमंडल ।
शून्य से उद्भाषित
सब कुछ,
शून्य में ही
विलय सबका ।
क्या शून्य ही
एक सत्य -
शाश्वत सत्य ?
कवि कुलवंत सिंह..
Thursday, October 25, 2007
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5 comments:
क्या शून्य ही
एक सत्य -
शाश्वत सत्य ?
----यही सत्य है...- भाषाशैली समृद्ध है..
कविता चिंतन मनन को बाध्य करती है .
शून्य पर गहन चिंतन. अच्छा लगा.
शून्य के भीतर तो सिर्फ शून्य है हां बाकी अन्य में शून्य अवश्य विस्तारित होता है…
कुलवन्त जी आप सबसे पहले तो यह बताईये आपके ब्लोग पर आते ही भल्ले-भल्ले क्यों होने लगती है ...बिलकुल सरदारों वाली धुन...मज़ा आ जाता है सुन कर...
अब बात करते है शून्य कि बहुत गहरा चिन्तन किया है आपने शून्य पर पहले खुद को शून्य मे डूबाना फ़िर शून्य से उभर कर आना...वाकई सरल नही है...
एक सुन्दर रचना के लिये आपको बधाईयाँ...
सुनीता(शानू)
मीनाक्षी जी, उड़न तश्तरी जी, डिवाईन जी, सुनीता जी..आप सभी ने शून्य से अवतरित हो कर
मेरी शून्यता को अपने बहुमूल्य शब्दों से भरकर..उस शून्य को सार्थकत प्रदान की.. बहुत बहुत धन्यवाद...
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