Friday, March 19, 2010

शहीद - ए - आजम भगत सिंह - 9 last part

शहीद - ए - आजम भगत सिंह - 9

मोल नही कुछ मान मुकुट का,
मोल नही कुछ सिंहासन का .
जीवन अर्पित करने आया,
माटी कर्ज़ चुकाने आया .

याचक बन कर मांग रहा हूँ,
तेरा दुख पहचान रहा हूँ .
लाल जो खेला तेरी गोदी,
डाल दे भारत माँ की गोदी .

तेरा तो घर द्वार क्रांति का,
तू जननी है स्रोत क्रांति का .
कोख पे अपनी कर अभिमान,
पाऊँ शहादत, दे वरदान .

एक पूत का गम मत करना,
सब तरुणों को पूत समझना .
जग में तेरा सदा सम्म्मान,
युगों युगों तक रहेगा मान .

खानदान की रीत निभाई,
राह क्रांति की मैने पाई .
दादा, चाचा, पिता कदम पर,
खून खौलता दीन दमन पर .

माता कर दो अब विदा विदा,
हो जाऊँ वतन पर फ़िदा फ़िदा .
रहे अभागे जो सदा सदा,
खुशियाँ हों उनको अदा अदा .

हर तरफ ध्वनित आजाज हुई,
स्वर भगत कण्ठ हर साज हुई .
भगत सिंह घर घर में छाया,
ब्रिटिश राज भी था घबराया .

वायसराय से माफी मांगें,
भगत लिखित में माफी मांगें .
कमी सजा में हो सकती है,
उनको फाँसी रुक सकती है .

देश प्रेम में मर मिट जाना,
स्वीकार नही, क्षमा माँगना .
हमें मृत्यु भय नही दिखाना,
उसको तो है गले लगाना .

हर सपूत में चाह जगाना,
मर मिटने की राह दिखाना .
जब्ती को है तोड़ गिराना,
चिता साम्राज्यवाद जलाना .

जितने दिन भी जेल रहे थे,
जीत मृत्यु को खेल रहे थे .
पूरे जग को प्रेरित करते,
आजादी में जीवन भरते .

आजादी के वह दीवाने,
देश हेतु मर मिटने वाले .
नहीं किसी से डरने वाले,
अंगारों पर चलने वाले .

कल चक्र पहचान लिया था,
दाम मौत का जान लिया था .
हँस हँस जीवन वार दिया था,
आजादी विश्वास दिया था .

अंतिम इच्छा जब पूछी थी,
अनुरति भगत की बस यही थी . (अनुरति = चाहत)
’जन्म यहीं पर फिर हो मेरा,
सेवा - देश धर्म हो मेरा .’

’दिल से न निकलेगी कभी भी,
वतन की उल्फत मर कर भी .
मेरी मिट्टी से आयेगी,
सदा खुशबू-ए-वतन आयेगी .’

क्रांतिवीर से राज्य डरा था,
युग युग चेतन प्राण भरा था .
आंदोलन का खौफ भरा था,
पतन मार्ग पर अधो गिरा था .

चौबीस को जो तय थी फाँसी,
तेईस मार्च दे दी फाँसी .
संध्या साढ़े सात समय था,
बलिदानों का अमर समय था .

पुण्य पर्व बलिदान मनाया,
हँसते हँसते ताल मिलाया .
झूम रहे थे वह मस्ताने,
संघर्ष क्रांति के परवाने .

बारूद बना कर यौवन को,
अर्पित कर के भारत भू को .
फांसी फंदा गले लगाया,
शोलों को घर घर पहुँचाया .

क्रांति की वेदी पर तर्पण,
यौवन फूलॊं सा कर अर्पण .
हँसते हँसते न्यौछावर थे,
जय इंकलाब के नारे थे .

भारत माँ ने कर आलिंगन,
भाल सजाया रक्तिम चंदन .
कण कण में वह व्याप्त हो गया,
भारत उसका ऋणी हो गया .

गीत सोहले संध्या गाये,
मिलन गीत चंदा ने गाये .
तारे भर ले आये घड़ोली,
सजी चांदनी की रंगोली .

देव उठा कर लाये डोली,
बिखरा सुरभित चंदन रोली .
पुण्यात्मा का कर कर वंदन,
लोप परम सत्ता अभिनंदन .

प्रकृति चकित कर रही थी नाज़,
आकाश मगन बना हमराज .
भूला पवन था करना शोर,
सिंधु भी भूल गया था रोर .

लहरों में आज नही हिलोर,
गम में सूरज, नही है भोर .
देव नमन को भू पर आये,
आँधी तूफाँ शीश झुकाये .

अंग्रजों का मन डोल रहा था,
सर चढ़ कर डर बोल रहा था .
मृत शरीर के कर के टुकड़े,
उसी समय बोरों में भरके,

ले फिरोजपुर वहाँ जलाया,
कुछ लोगों को वहाँ जो पाया,
टुकड़े अधजले सतलज फेंक,
नौ दो ग्यारह हुए अंग्रेज .

देखा पास नजारा आकर,
हैरानी थी टुकड़े पाकर .
ग्रामीणों ने किया सत्कार,
विधिवत किया अंतिम संस्कार .

वीर भगत तुम हममें जिंदा,
वीर भगत तुम सबमें जिंदा .
हर देश भक्त में तुम रहोगे,
जिंदा हो ! जिंदा रहोगे !

स्वतंत्रता संग्राम इतिहास,
नाम भगत सिंह ध्रुव आकाश .
नाम अमर है, अमिट रहेगा,
स्वातंत्र्य वीर अक्षुण्ण रहेगा .

आविर्भाव भारत उत्थान,
आलोकित राष्ट्र भक्ति विहान .
भगत सिंह साश्वत योगदान,
भास्कर शौर्य बलिदान महान .

कवि कुलवंत सिंह

9 comments:

Randhir Singh Suman said...

nice

Manju Gupta said...

भाई कुलवंत जी ,
नमस्ते .
वीर भगत सिंह की देश भक्ति से भरा खंड काव्य अद्वितीय है .बड़ों से लेकर बच्चों के लिए प्रेरणा स्त्रोत है .छंदयुक्त है .
जिस तरह भगत सिंह अपने कामों -गुणों -देशभक्ति से जग में अमर है .उसी तरह से
आपकी अनमोल लेखनी हर दिल में विद्यमान रहेगी .
९ भाग में अनुरति आया है सही अनुरक्ति है .
मैंने पूरा पढ़ा है .मैं बहुत प्रभावित हुई .अद्भुत है . जग में प्रबुद्ध जनों द्वारा जरूर सराहा जाएगा .उत्कृष्ट रचना को जग में यश मिले .
इन्ही शुभ कामनाओं के साथ -
मंजू गुप्ता .

Unknown said...

भाई वाह !

साधु साधु ..........

निहाल कर दिया आपकी लेखनी ने

धन्य हो......जय हो आपकी !

Urmi said...

बहुत बढ़िया लिखा है आपने जो काबिले तारीफ़ है! आपकी लेखनी को सलाम!

RAJ SINH said...

कुलवंत जी ,
नमन आपका !

मेल से शहीदे आज़म भगत सिंह खंड काव्य पढने को मिला तो पढता ही चला गया.लेकिन ५८ वें पृष्ठ के बाद फॉण्ट धुंधला मिला ,पढने की बहुत कोशिश के बाद भी न पढ़ पाया .मन मसोस कर रह गया.उम्मीद है किसी दिन पढ़ पाऊंगा.
चित्रों सहित लेखन खून में उबाल ला देता है और खुद पर शर्म भी की आज का भारत क्या उन शहीदों की विरासत है.
आप का यह लेखन स्तुत्य है.

ओम पुरोहित'कागद' said...

भाई कुलवंत जी,
सत श्री अकाल!
आपके ब्लाग की जानकारी आखर कलश से मिली औरभ्रमण का मन हुआ और अब इस वक्त आपके ब्लाग पर उंगलियोँ के बल घूम रहा हूं।बहुत बढ़िया है। छोटे फोन्ट व फीके रंग अखरते हैँ।आपकी रचनाएं अच्छी लगीँ।बधाई!
omkagad.blogspot.com

संजय भास्‍कर said...

बहुत बढ़िया लिखा है आपने जो काबिले तारीफ़ है! आपकी लेखनी को सलाम!

रंजना said...

नमन नमन नमन...आपकी लेखनी और भारत माता के सपूत शहीद भगत सिंह को....
बहुत ही सुन्दर तथा भावुक कर देने वाली रचना....

Kavi Kulwant said...

aap sabhi mitron ka haardik dhanyawaad....

Om purohit ji font aur colour par dhyaan dilaane ke liye aap ka bahut shukriya.. shayad abhi thik lage...!